तेल उद्योग बना तारणहार, कोरोना में भी नहीं कटी रोजगार की डोर

भरतपुर . कोरोना के कहर ने भले ही हर उद्योग को आहत कर दिया हो, लेकिन भरतपुर के तेल की धार कोरोना का कहर भी कम नहीं कर सका है। मजदूरों के लिए भी यह उद्योग संजीवनी सरीखा ही साबित हुआ है। वजह, इस उद्योग से जुड़े मजदूरों के करीब पांच हजार परिवारों को यहां कोरोना काल में भी बराबर रोजगार मिला है। कोरोना संकट की इस घड़ी में भी यह उद्योग भरतपुर के श्रमिक वर्ग के लिए वरदान के समान रहा है।
भरतपुर की सरसों के तेल की सुगंध देश भर की रसोई महकती हैं। खास तौर से बिहार, बंगाल, आसाम, झारखंड एवं त्रिपुरा में यहां के तेल की खास डिमांड रहती है। खाद्य वस्तुओं में शुमार तेल आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में आता है। ऐसे में कोरोना के समय भी सरकारी गााइडलाइन के मुताबिक तेल उद्योग बराबर चलता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि यहां के मजदूर अपने परिवार का पालन-पोषण सहज रूप से करते रहे। साथ ही कर्टन, टिन एवं ट्रांसपोर्ट उद्योग से जुड़े लोगों को भी इस उद्योग ने खूब राहत बख्शी। ऐसे में इस कारोबार से जुड़े मजदूरों के सामने इस उद्योग ने रोजी-रोटी का संकट खड़ा नहीं होने दिया। ऐसे में यह उद्योग भरतपुर जिले के लिए 'जीवन रेखाÓ बनकर उभरा है।

स्थानीय श्रमिक भी बने रहे ताकत

कोरोना काल में जहां देश-विदेश में उद्योग धंधे करीब-करीब ठप से हो गए। वहीं भरतपुर का तेल उद्योग बराबर गति से दौड़ता रहा। इस उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि यहां की तेल मिलों सहित अन्य सपोर्टिंग उद्योगों में सभी मजदूर स्थानीय ही हैं। ऐसे में यहां के मजदूर इस उद्योग की ताकत बने रहे। स्थानीय मजदूरों का यहां से पलायन नहीं होने के कारण इसका संचालन बदस्तूर चलता रहा। ऐसे में मजदूर और इस उद्योग धंधे से जुड़े व्यापारी इस संकट की घड़ी से उबरने में कामयाब रहे। खास बात यह है कि अन्य स्थानों पर प्रवासी मजदूरों की व्यथा जगजाहिर होती रही, लेकिन यहां के मजदूरों को इस उद्योग से जुड़े लोगों ने अप्रेल माह में प्रतिवर्ष बढऩे वाला वेतन भी बढ़ाया।

इसलिए भाता है भरतपुर का तेल

जानकार बताते हैं कि बिहार, बंगाल, आसाम, झारखंड और त्रिपुरा के लोगों को भरतपुर की सरसों से निकला खूब भाता है। इसकी खास वजह यह है कि इन प्रदेशों में मछली चावल बड़े चाव से खाया जाता है। मछली के सेवन के बाद उठने वाली दुर्गंध को सरसों का तेल खात्मा करता है। साथ ही इसकी खुशबू खाने का स्वाद भी बढ़ाती है। ऐसे में भरतपुर के तेल की इन प्रदेशों में खासी मांग बनी रहती है।

यूं भी है फायदेमंद

जानकार बताते हैं कि सरसों के तेल में कोलेस्ट्रोल नहीं होता है। ऐसे में यह खाने में नुकसानदायक नहीं होता है। जानकारों का कहना है कि बेहद कम तापमान में भी यह तेल जमता नहीं है। ऐसे में विशेषज्ञ भी इस तेल को खाने की सलाह देते हैं। अन्य तेलों के मुकाबले सरसों का तेल खाने के लिए अच्छा माना जाता है।

हर रोज बाहा जाता है 700 टन तेल

तेल व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि भरतपुर का तेल खाने में अच्छा होने के साथ इसका स्वाद भी बेहतर है। ऐसे में बाहर के प्रदेशों में इसकी डिमांड लगातार बनी रहती है। भरतपुर से हर रोज करीब 30 से 35 ट्रक तेल लेकर जाते हैं। एक ट्रक में 20 टन तेल जाताहै। ऐसे में यहां से करीब 700 टन तेल रोज बाहर जाता है।

इसलिए बढ़ रहे दाम

तेल उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पीएम पहल कर रहे हैं। इस बार किसानों को उनकी उपज का पूरा मूल्य मिल रहा है। मंडी में सरसों के भाव अच्छे होने के कारण इस बार तेल के दामों में भी इजाफा हुआ है। व्यापारियों का कहना है कि तेल के भावों में करीब 10 रुपए किलो तक का इजाफा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक एक घर में 5 किलो प्रतिमाह सरसों तेल की खपत है। ऐसे एक घर में करीब 50 रुपए का असर आ रहा है। इससे लोगों पर ज्यादा भार नहीं पड़ रहा, लेकिन इससे किसानों की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो रही है।

इनका कहना है

यहां का तेल उद्योग जिले के लिए लाइफ लाइन जैसा है। कोरोना काल में भी यहां के मजदूर बेरोजगार नहीं हुए। उन्हें बराकर काम मिलता रहा। यह जिले की पहचान है। इससे करीब 5 हजार मजदूरों के परिवारों को रोजी-रोटी मिल रही है।
- कृष्ण कुमार अग्रवाल, अध्यक्ष संभागीय चेम्बर ऑफ कॉमर्स भरतपुर



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/corona-also-did-not-cut-the-door-of-employment-6229751/

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