ऐसा शातिर अंदाज...चोरी हो चुके वाहनों को ही बेचकर कमाए 10 करोड़ रुपए

भरतपुर/भुसावर. दो सगे भाइयों ने गिरोह बनाकर फाइनेंस कंपनियों के माध्यम से डाउन पेमेंट पर करीब 80 से अधिक वाहन खरीद कर बेच दिया। इन वाहनों की कीमत करीब 10 करोड़ रुपए आंकी गई है। दोनों भाई लंबे समय से गिरोह बनाकर भरतपुर, करौली, अलवर, दौसा समेत विभिन्न जिलों में इस तरह का क्राइम कर रहे थे। पुलिस काफी समय से इनकी तलाश में जुटी हुई थी। आरोपी इतने शातिर हैं कि वह हर बार नए दस्तावेजों के आधार पर फर्जीवाड़ा करते थे। पुलिस ने वाहक क्रय-विक्रय कर उन्हें खुर्द-बुर्द कर फाइनेंस कम्पनियों के साथ धोखाधड़ी करने वाले अन्तरराज्यीय गिरोह का खुलासा किया है। पुलिस ने गिरोह के सरगना समेत दो जनों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों के खिलाफ भुसावर, अलवर, दौसा एवं करौली समेत प्रदेश के कई जिलों में धोखाधड़ी के मामले भी दर्ज हैं। पूछताछ में सामने आया कि आरोपी करीब 10-11 जेसीबी मशीन, 40 ट्रैक्टर एवं 20 बोलेरो गाड़ी समेत अन्य वाहन फाइनेंस कंपनियों के जरिए डाउन पेमेंट पर खरीद कर उन्हें बेच चुके हैं। थाना प्रभारी राजेश खटाना ने बताया कि इस मामले में पुलिस ने घेराबंदी कर आरोपी व मुख्य सरगना पैण्डका निवासी दलवीर सिंह गुर्जर पुत्र गोविंद सिंह व उसके भाई हुकुमसिंह गुर्जर को गिरफ्तार कियाहै। आरोपियों के खिलाफ अकेले भुसावर थाने पर सात मामले दर्ज हैं।

एक-दो लाख डाउन पेमेंट देकर करा लेते थे फाइनेंस

ऐसे कुछ मामलों की पड़ताल करने पर सामने आता है कि गिरोह ट्रेवल्स एजेंसी की आड़ में एक-दो लाख का डाउन पेमेंट देकर पहले कंपनियों से गाडिय़ां फाइनेंस कराते थे। उसकी एक-दो किस्तें भी समय पर जमा करते थे। बाद में जिस पते पर गाडिय़ां खरीदते थे वह बदल देते थे या चोरी होना बताकर उसे अन्य राज्यों में फर्जी एनओसी तैयार कर बेचते थे। पुलिस एफआइआर दर्ज कर वाहन तलाशती रहती थी। इसमें राज्यों के परिवहन विभाग व कई फाइनेंस कंपनी के कर्मचारियों की मिलीभगत की आशंका रहती है। जब भी पुलिस चेकिंग में इनके वाहनों को रोकती थी तो ये सिर्फ स्टेट पासिंग के आरटीओ की ओर से बने कागज दिखाकर बच जाते है।

पहले भी सामने आया था ऐसा ही मामला

कुछ वर्ष पहले भरतपुर के सेवर थाने में भी एक नाम से मुंबई में एक ट्रेवल्स एजेंसी डालकर इस तरह का फर्जीवाड़ा करने का मामला सामने आया था। इसी की आड़ में आरोपी किराये पर टैक्सी के रूप में चार कारें चला रहे थे। इसकी आड़ में अन्य राज्यों की गाडिय़ां खरीदने-बेचने का काम शुरू किया था। फर्जी एनओसी व दस्तावेज और नंबर बदलकर सस्ते दाम में राजस्थान की गाड़ी गुजरात समेत अन्य राज्यों में बेचने की बात सामने आई थी।

इस तरह के मामलों में ये खास बात

1. गिरोह की ओर से थानों में चोरी का मुकदमा दर्ज कराया जाता है। भुसावर व वैर में ऐसे दर्जनों केस सामने आते रहे हैं। चोरी के बाद उसका क्लेम उठा लिया जाता है। जबकि वाहन को अन्य को बेच दिया जाता है।

2. गिरोह की ओर से ज्यादातर वाहनों को राजस्थान व हरियाणा के मेवात में बेचा गया है। यह गिरोह आम लोगों को दस्तावेज लेकर उनके नाम से गाड़ी खरीद कर हर माह 20 से 40 हजार रुपए महीने देने की बात कहते थे। दस्तावेज लेकर कंपनी से डाउन पेमेंट पर गाड़ी खरीद लेते। इसके बाद कुछ माह तक संबंधित दस्तावेज वालों को रुपए देते। कुछ माह के दौरान ही वाहन को नगर या ऐसे किसी भी थाना क्षेत्र में कोर्ट से एफआइआर दर्ज कराकर चोरी बता देते। पहले उसका बीमा उठाते और वाहन को बेच देते थे।

ऐसे हुआ खुलासा...

जिन लोगों के दस्तावेजों से वाहन खरीदे गए थे। उनमें से कुछ वाहनों को बगैर चोरी बताए बेच दिया गया तो कुछ वाहनों के मामले में बीमा कंपनियों ने सच का पता लगा लिया। अब कंपनी जिनके नाम वाहन थे उनसे किस्त जमा कराने का दबाव डालने लगी और नोटिस भेजने लगी तो मामले का खुलासा हुआ। तब जाकर इस तरह के मामले थाने में दर्ज होने लगे।



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/earned-10-crore-rupees-by-selling-stolen-vehicles-only-6366860/

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