लॉकडाउन के बाद पान की खेती बर्बाद लेकिन सीमा ने नहीं मानी हार

भरतपुर. लवों की शान कहलाने वाले पान की खेती कभी तमौली परिवारों की आर्थिक समृद्धी का प्रतीक रही थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद इस खेती ने इन परिवारों को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है। बयाना पंचायत समिति क्षेत्र के खरैरी गांव की रहने वाली सीमा ने तो पान की खेती में इतनी मेहनत की कि परिवार की गरीबी को काफी हद तक दूर कर दिया।
जब सीमा शादी होकर गांव में आई तो पूरा परिवार पान की खेती में जुटा रहता और परम्परागत तरीके से पान की बेलों में पानी देने, बीमारियों की रोकथाम के लिए साधारण तरीके अपनाना जैसे कार्य करता था, लेकिन जब सीमा ने पानी देने के परंपरागत तरीकों में बदलाव किया तो मेहनत भी घट गई और समय पर पान की बेलों को पानी मिलने लगा। इसके अलावा रोगों की रोकथाम के लिए परम्परागत तरीकों को छोड़कर मशीन से कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव शुरू किया और पान की पैकिंग के लिए भी नए तरीके अपनाए। इससे कम लागत में अधिक मुनाफा मिलने लगा। यद्यपि सीमा अधिक पढी लिखी नहीं और पीहर में भी पान की खेती का काम होता था लेकिन उसने सुसराल आकर नए तरीके अपनाने शुरू किए। पान की खेती के लिए स्थानीय बीजों के स्थान पर मध्यप्रदेश से उन्नत किस्मों के बीज मंगवाने शुरू किए। इससे अधिक उत्पादन मिलने लगा। पान की खेती खरैरी गांव के अलावा बयाना तहसील के उमरैण, खान खेड़ा, बागरैन सहित करौली जिले के मासलपुर व गढ़मोरा गांव में होती है। जहां अधिकांश तमौली परिवार ही इस खेती को करते आ रहे हैं। पान की खेती के लिए छायादार बेरजा बनाया जाता है। जो पूरी तरह घासफूंस से ढका रहता है। इस बेरजा में 20-20 की कतारों में पान की बेलें लगाई जाती हैं। मार्च के माह में बीज बोए जाते हैं तो मई व जून में नई पत्तियां आना शुरू हो जाती है और अगस्त व सितम्बर माह में इनके पत्ते बड़े हो जाते हैं जिन्हें तोड़कर पैकिंग के बाद आगरा, मथुरा, नई दिल्ली, अलीगढ़, सहारनपुर, मेरठ, फिरोजाबाद आदि शहरों की मंडियों में भेजा जाता है। चूंकि खरैरी बागरैन गांव में देशी किस्म का पान पैदा होता है। जो पहले 40 पैसे प्रति पान की दर से बिकता था लेकिन गुटखा तम्बाकू का प्रचलन बढ़ जाने की वजह से पान का उपयोग कम हो गया है। जिसकी वजह से इसकी कीमत घट कर मात्र 20 पैसे रह गई है। यह पान इतना स्वादिष्ट होता है कि मुस्लिम देशों में इसे बहुत अधिक पसंद किया जाता है। नई दिल्ली से इस पान को इन देशों के लिए निर्यात किया जा रहा है।

नहीं मिलता मुआवजा क्योंकि यह खेती न बागवानी में न कृषि में

बदलती मौसमी परिस्थितियों की मार पान की खेती पर भी पड़ी है। इसकी वजह से यह खेती अब लाभदायक नहीं रही है। वहीं दूसरी ओर इस खेती में होने वाले नुकसान का कोई मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है क्योंकि यह न तो बागवानी में और न ही कृषि में शामिल कर रखी है। पान की खेती करने वाली सीमा इन सब समस्याओं से जूझती हुई निरन्तर अपने काम में जुटी हुई है। वह कहती है कि मुनाफा चाहे कम मिल रहा है लेकिन इस काम के अलावा उसके पास अन्य कोई रास्ता भी नहीं दिखाई देता। वह अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाकर अन्य कार्य करने के लिए प्रेरित कर रही है। इस गांव से करीब 200 परिवार पान की खेती छोड़कर पलायन कर चुके हैं। सीमा का कहना है कि यदि उन्हें भी पान अनुसंधान संस्थान से नवीन तकनीक एवं क्रियाओं की जानकारी मिल जाए तो वे इस खेती को पुर्नजीवित कर सकते हैं।



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/but-seema-did-not-give-up-6493170/

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