देश के पटल पर हमारे उद्योग की छाप, 10 हजार करोड़ का है व्यवसाय

भरतपुर. देश के पटल पर हमारे तेल उद्योग ने अमिट छाप छोड़ी है। तेल उद्योग जहां स्थानीय लोगों के लिए जीवनरेखा बना है। वहीं आला दर्जे के काम ने इसे अव्वल मुकाम पर पहुंचा दिया है। हमारी सरसों की साख देशभर में सुर्खियां बटोर रही है। आलम यह है कि भरतपुर की सरसों से बना तेल आज देश के विभिन्न प्रांतों के लोगों की जुबां पर है। सरसों पिलाई का प्रतिवर्ष का करीब 10 हजार करोड़ रुपए का व्यापार है। ऐसे में यह उद्योग देशभर में भरतपुर मॉडल के नाम से पहचान बना रहा है।
जिले में वर्षों से सरसों की फसल की खेती हो रही है। ऐसे में अनुभव से उगी सरसों की खेती जहां किसानों के लिए संजीवनी सरीखी साबित हो रही है। वहीं मजदूरों को भी भरपूर रोजगार मुहैया करा रही है। देशभर के विभिन्न प्रांतों की रसोई हमारे सरसों के तेल की सुगंध से महक रही हैं। अच्छी गुणवत्ता हमारी सरसों की ताकत बनी हुई है। इसी का नतीजा है कि भरतपुर के तेल की डिमांड हमेशा बनी रहती है। यूं तो पूरे प्रदेश में ही अच्छी सरसों का उत्पादन होता है, लेकिन यहां उत्पादन के साथ तेल मिलों में पिलाई के बाद बेहतर गुणवत्ता से निर्मित तेल का स्वाद हर जुबां पर है।

इन प्रदेशों की जुबां पर हमारा स्वाद

मुख्य रूप से बिहार, बंगाल, आसाम, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड की रसोई भरतपुर के तेल से महक रही हैं। इसकी खास वजह यह है कि इन प्रदेशों में मछली और चावल बड़े चाव से खाए जाते हैं। मछली से आने वाली दुर्गंध का भरतपुर में तैयार होने वाला झागदार सरसों का तेल खात्मा करता है। इस वजह से यह हमेशा डिमांड में रहता है। जानकारों का दावा है कि सरसों के तेल में कोलेस्ट्रोल नहीं होता है। ऐसे में यह खाने में शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता। अन्य तेलों के मुकाबले सरसों का तेल खाने के लिए अच्छा माना जाता है।

कोरोना में भी थामे रखा हाथ

कोरोना की विपदा यूं तो देश-विदेश में सभी ने झेली, लेकिन तेल उद्योग इस संकटकाल में भी मजदूरों का हाथ थामे रखा। खाद्य वस्तुओं में शुमार तेल आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में आता है। ऐसे में कोरोना के समय भी सरकारी गााइडलाइन के मुताबिक तेल उद्योग बराबर चलता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि यहां के मजदूर अपने परिवार का पालन-पोषण करते रहे। इस उद्योग के सहारे कर्टन, टिन एवं ट्रांसपोर्ट उद्योग भी बराबर चलता रहा। ऐसे में यह उद्योग भरतपुर जिले के लिए जीवन रेखा बनकर उभरा।

प्रतिदिन जाते हैं 70 से 75 ट्रक

देश में खास पहचान रखने वाले हमारे तेल की धार का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भरतपुर से प्रतिदिन 70 से 75 ट्रक तेल लेकर बाहर जाते हैं। एक ट्रक में करीब 25 टन तेल आता है। इस लिहाज से देखें तो 1875 टन तेल प्रतिदिन भरतपुर से अन्य प्रदेशों के लिए भेजा जाता है।

फैक्ट फाइल

- 10 हजार करोड़ रुपए की होती है पिलाई प्रतिवर्ष

- 50 हजार क्विंटल सरसों प्रतिदिन होती है क्रश

- 30 करोड़ प्रतिदिन की होती है पिलाई

- 17500 क्विंटल तेल प्रतिदिन बनता है भरतपुर में

यह बोले व्यापार

भरतपुर जिले के लिए तेल उद्योग लाइफ लाइन है। सबसे ज्यादा रोजगार इसी उद्योग ने उपलब्ध करा रखा है। किसानों को इसकी कैश प्राइस मिलती है। किसान और मजदूरों के लिए यह जीवनदायिनी की तरह है।

- कृष्ण कुमार अग्रवाल, अध्यक्ष भरतपुर ऑयल मिलर एसोसिएशन

तेल उद्योग जिले की जीवनरेखा है। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। तेल उद्योग ने भरतपुर को देश में अलग पहचान दिलाई है। शुद्धता के लिहाज से भी भरतपुर का तेल जाना जाता है।

- वैभव गर्ग, सचिव बृज औद्योगिक संघ भरतपुर

कोरोना जैसे समय में भी यह मजदूर एवं अन्य लोगों के लिए संकट को हरने वाला उद्योग बना रहा है। इस उद्योग ने कोरोना जैसे समय में भी लोगों को बदस्तूर रोजगार दिया। यह उद्योग भरतपुर जिले की शान है।

-दीनदयाल सिंघल, विधि मंत्री ब्रज औद्योगिक क्षेत्र भरतपुर

भरतपुर के तेल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों को भी अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए। इस उद्योग ने जिले को नई पहचान दिलाने का काम किया है। यही ऐसा उद्योग है जो लोगों को रोजगार दे रहा है।

- संजय सिंघल, व्यापारी तेल मिल भरतपुर

भरतपुर के तेल के तेल का स्वाद देश के विभिन्न प्रांत के लोगों की जुबां पर है। यही वजह है कि इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है। लोगों को रोजगार मुहैया कराने में यह उद्योग अव्वल है।

- लक्ष्मण प्रसाद गर्ग, अध्यक्ष ब्रज औद्योगिक क्षेत्र भरतपुर



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/business-worth-10-thousand-crores-6795821/

Comments

Popular posts from this blog

...कैबीनेट मंत्री की फर्जी डिजायर से भरतपुर की राजनीति में बड़ा भूचाल

हवा भरने वाले कम्प्रेशर में ऐसा ब्लास्ट, करीब 60 फीट दूर जाकर गिरा दुकानदार, मौत

भाजपा की नैया पार लगाने को तैयार किए जाएंगे पन्ना प्रमुख