ग्वाले की असहनीय पीर ने बदल दिया मन, अब सब कुछ दीन-हीनों को अर्पण

भरतपुर. बाल मन को एक पीड़ा ने ऐसा कचोटा कि अब उनकी जिंदगी दीन-हीनों के नाम हो गई है। अपना घर हर व्यक्ति के लिए दुनिया की सबसे प्यारी और महफूज जगह होती है। बस यही सोच थी कि अपना घर आने के बाद कोई भी उसे पराया नहीं समझे। सेवा भी इसी भाव से हो कि उसे भान तक नहीं हो कि वह बेगानों के बीच है। सेवा के इसी भाव पर रखी गई अपना घर की नींव आज लाखों बेसहारा जिंदगियों का सहारा बन गई है और अपना घर आज सेवा का दूसरा नाम है। हम बात कर रहे हैं बझेरा स्थित मां माधुरी ब्रज वारिस सदन (अपना घर) की।
उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ के गांव सहरोई निवासी अपना घर के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज बताते हैं कि उनके गांव में एक ग्वाला थे, जो गांव वालों के पशुओं को चराने का काम करते थे। वृद्धावस्था में जब वह बीमार हुए तो उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। अंतत: उनके शरीर में कीड़े पड़ गए और उन्होंने बीमारी के एक माह बाद ही देह त्याग दी। यह पीड़ा उन्हें अंदर तक कचोट गई। इस पीड़ा ने उनके बाल मन को दीन-हीनों की सेवा की ओर धकेल दिया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह भरतपुर आए और यहां होम्योपैथी में मेडिकल ग्रेजुएशन करने के बाद वर्ष 1993 में बझेरा गंाव में क्लीनिक खोला। यहां उन्हें अपनी पत्नी डॉ. माधुरी भारद्वाज का खूब सहयोग मिला। डॉ. माधुरी भी मदर टेरेसा की सेवा से प्रभावित थीं। ऐसे में दंपती ने अपनी जिंदगी को दूसरों की सेवा करने को समर्पित करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। यहां से उठे सेवा के कदम आज विदेशों तक जा पहुंचे हैं। डॉ. दंपती का एक ही ध्येय है कि कोई भी दीन-हीन, असहाय और बीमार की जिंदगी की डोर सड़कों पर नहीं टूटे।

संवारी नन्हीं बच्ची की जान

डॉ. भारद्वाज बताते हैं कि जब क्लीनिक की शुरुआत ही थी। गांव बरसो की एक महिला ने राजकीय अस्पताल में एक बालिका को जन्म दिया। यह महज संयोग ही था कि बालिका के जन्म के साथ ही उसके पिता की सड़क हादसे में मौत हो गई। ऐसे में बालिका को अभागी नाम दिया गया। आलम यह था कि उस नन्हीं जान को यह तक नहीं पता था कि उसका कुसूर क्या है। फिर भी वह अनचाही यातना सी सह रही थी। दूध भी उसे शायद ही दिया जा रहा हो। डॉ. बताते हैं कि इस सूचना पर वह गांव पहुंचे और बालिका को अपने साथ ले गए। उस समय बालिका महज 900 ग्राम की थी। इसके बाद असहायों की सेवा का यह सिलसिला चल पड़ा। वर्ष 2000 में चिकित्सक दंपती ने संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया और सेवा में जुट गए।

खुद धोते थे प्रभुजी के कपड़े

अपना घर की शुरुआत चिकित्सक दंपती ने क्लीनिक संचालन के साथ ही शुरू कर दी थी। उनके रहने के लिए महज 20 गुणा 20 का एक कमरा था। इस दौरान उनके पास 23 प्रभुजी रहते थे। सेवा का आलम ऐसा था कि डॉ. माधुरी उनके लिए खाना वगैरह बनाने का काम करती थीं तो डॉ. भारद्वाज उनके कपड़े धोने सहित अन्य काम करते थे। चिकित्सक दंपती भी प्रभुजी के साथ ही नीचे चटाई बिछाकर सोते थे। यह शुरुआती दौर उनके लिए काफी पेचीदगी भरा था। वर्ष 2000 में पूरी साल में डोनेशन के नाम पर उन्हें 1500 रुपए मिले थे, लेकिन यह सेवा का भाव और ईश्वर की कृपा थी कि वर्ष 2003 में ही डोनेशन की राशि बढ़कर डेढ़ लाख रुपए तक पहुंच गई। इसके बाद सिलसिला चल पड़ा। असहायों को लाने का काम चिकित्सक दंपती की कार से ही होता था। इसके बाद वर्ष 2008 में उन्हें एक एम्बुलेंस मिल गई। यह सिलसिला चल पड़ा। आज संस्था के पास 100 से अधिक वाहन असहायों की सेवा के लिए हैं।

पहली सहायता मिली आटा

डॉ. भारद्वाज बताते हैं कि शुरुआती दौर में मुश्किलें खूब थीं, लेकिन ईश्वर पर विश्वास बहुत प्रगाढ़ था। इसी का नतीजा था कि हम संसाधनों से ज्यादा चिंता सेवा को लेकर करते थे। एक दिन शाम को आटा खत्म हो गया। मैं आटा लेकर आने वाला था कि क्लीनिक पर एक महिला डिलेवरी के लिए आ गई तो हम रात्रि 11 बजे फ्री हुए। रात्रि को चावल वगैराह से काम चल गया। सुबह क्लीनिक पर एक बाबा पहुंचे और उन्होंने खाना मांगा, लेकिन घर में आटा नहीं था। हम बाबा के खाने के बंदोबस्त को लेकर मंथन कर रहे थे कि इस दौरान एक सज्जन 50 किलो कट्टे का आटा लेकर संस्थान को दान देने पहुंच गए। यह किसी ईश्वरीय चमत्कार जैसा ही रहा।

तीर्थस्थल जैसी बन रही मान्यता

अपना घर की सेवा अब मान्यता का रूप ले रही है। डॉ. भारद्वाज बताते हैं कि लोग अपना घर आश्रम अब तीर्थस्थल सरीखी मान्यता पा रहा है। एक साल में 500 से अधिक गाडिय़ां यहां तीर्थस्थल जैसे दर्शन के लिए पहुंचती हैं, जिन पर बाकायदा अपना घर आश्रम तीर्थस्थल जैसा बैनर लगा होता है। डॉ. भारद्वाज बताते हैं कि मथुरा-वृंदावन, गिर्राजी, आगरा एवं कैलादेवी जैसे स्थलों पर दर्शनों के लिए पहुंचने वाले श्रद्धालु अब अपना घर को भी तीर्थस्थल जैसी जगहों में शुमार करके चलते हैं और यहां ट्यूर बनाकर घूमने आते हैं। खास बात यह है कि यहां आने वाले लोग तीर्थस्थल जैसा चढ़ावा भी चढ़ाकर जाते हैं।

कहां कितने आश्रम
राजस्थान 18
उत्तरप्रदेश 9
दिल्ली 2
मध्यप्रदेश 3
हरियाणा 1
गुजरात 2
पश्चिम बंगाल 2
छत्तीसगढ़ 1
नेपाल 1
कुल 39
आवासरत प्रभुजी 6739



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/now-offer-everything-to-the-oppressed-6792477/

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