सुनो साहब। यहां कोरोना आया तो मच जाएगा कोहराम

भरतपुर. न यह अपना नाम जानते हैं और न पहचान। शरीर बीमारियों का घर है। सांसें सेवा और दवाओं के भरोसे हैं। इम्युनिटी पॉवर इतनी कम है कि किसी भी रोग को इनकी देह में आसानी से पनाह मिल जाती है। यदि इन्हें सुरक्षित करने की सोची भी जाए तो नियमों का रोड़ा इनकी सांसों पर सितम ढाता नजर आ रहा है। वजह, करीब 2 हजार से ज्यादा के पास अपनी पहचान का कोई दस्तावेज तक नहीं है। ऐसे में इनका वैक्सीनेशन कैसे होगा। यह सवाल यहां की फिक्र को बढ़ा रहा है। हम बात कर रहे हैं मां माधुरी बृज वारिस सदन (अपना घर) में रह रहे प्रभुजी की।
अपना घर बझेरा में वर्तमान में करीब 3400 प्रभुजी आवासरत हैं। इनमें से 1200 के पास तो पहचान के लिए आधार कार्ड हैं, लेकिन करीब 2200 के पास पहचान का दस्तावेज तो दूर इन्हें अपने नाम तक का इल्म नहीं है। इनमें से करीब 90 प्रतिशत प्रभुजी दवा पर आश्रित हैं, जो गाइड लाइन की पालना का मतलब तक नहीं समझते। अब सबसे बड़ी चिंता यह है कि इनका बिना पहचान के वैक्सीनेशन कैसे होगा और बिना वैक्सीनेशन के यह कैसे महफूज रह सकेंगे। (भगवान न करे) यदि यहां कोरोना घुसा और यह स्थल हॉट-स्पॉट बना तो पूरे भरतपुर के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। आशंका इतनी है कि यहां कोरोना आया तो मौतों का सिलसिला थामना मुश्किल हो जाएगा। अब एक मई से 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के कोरोना टीका लगना प्रस्तावित है। यह इसमें शामिल नहीं हैं। हाल ही में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों के टीके में भी यह शामिल नहीं रहे हैं।

कई गांवों का सम्पर्क, शहर भी कारोबार से जुड़ा

अपना घर प्रशासन ने यूं तो सावधानी के साथ सतर्कता के पूरे प्रबंध कर रखे हैं। फिर भी यहां आशंकाएं बलबती हैं। वजह, अपना घर के आसपास के करीब 20 गांवों के यहां 225 स्थाई एवं 1000 अस्थाई कार्मिक तैनात हैं, जिनका आवागमन भी बाहर रहता है। इसके अलावा पानी, सब्जी एवं आटा हर रोज यहां पहुंचता है। भरतपुर से अपना घर को प्रतिदिन करीब 5 लाख रुपए की खरीदारी होती है। ऐसे में व्यापारी वर्ग भी इससे जुड़ा है। यदि यह स्थान हॉट स्पॉट बना तो जिले के लिए खासी मुश्किल हो जाएगी।

अपना घर ही करता है नामकरण

सरकारी स्तर पर पहचान संबंधी दस्तावेज होने पर ही लोगों का वैक्सीनेशन किया जा रहा है, लेकिन अपना घर में पहुंचने वाले ज्यादातर लोगों को अपना नाम तक नहीं पता होता है। ऐसे में पहचान तो दूर की बात है। खास बात यह है कि अपना घर आने वाले करीब 70 प्रतिशत प्रभुजी का नामकरण अपना घर में किया जाता है। कईयों को तो अपना खुद का होश नहीं होता है और वह बोल भी नहीं पाते। ऐसे में इनका टीकाकरण यहां के लिए चिंता बनी हुई है।

बने नीति तो बने बात

अपना घर की तरह की प्रदेश पूरे प्रदेश में इस तरह की संस्थाएं काम कर रही हैं। कई जगह ऐसे उदाहरण भी सामने आ रहे हैं, जहां ऐसे लोग अपना नाम नहीं बता पा रहे हैं। प्रदेश की बात करें तो अपना घर के ही राजस्थान में 19 सेंटर हैं। इनमें ऐसे ही प्रभुजी आसरा लिए हुए हैं। इसके अलावा सरकारी स्तर पर भी कई ऐसे होम हैं, जहां ऐसे लोग रह रहे हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर कोई नीति नहीं बन रही है। ऐसे में अन्य लोगों के लिए भी चिंता का कारण बन रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक पूरे प्रदेश में 10 से 15 हजार ऐसे लोग विभिन्न संस्थाओं में आवासरस हैं।

इनका कहना है

यह सही है कि अपना घर में आवासरस करीब 3400 प्रभुजी में से महज 1200 के पास ही अपनी आई है। अन्य अपना नाम एवं पता तक नहीं जानते हैं। ऐसे में बिना पहचान इनका टीकाकरण कैसे होगा। यह चिंता का विषय है। यहां के प्रभुजी गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। ऐसे में इनका टीकाकरण भी जरूरी है। सरकारी स्तर पर ऐसे लोगों के टीकाकरण की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि यहां कोरोना आया तो स्थिति संभालना बेहद मुश्किल होगा।

- डॉ. बीएम भारद्वाज, संस्थापक अपना घर



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/hey-sir-if-corona-comes-here-there-will-be-chaos-6819940/

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