कैंसर ने छीना साया, ममता पर कोरोना की मार

भरतपुर. वक्त के क्रूर हाथों ने उनसे सब कुछ छीन लिया है। पिता का 'सायाÓ कैंसर से सिमट गया तो मां की 'ममताÓ पर भी कोरोना लील गया। अब सहारे के नाम पर दुनियादारी का रहमोकरम ही उनका आसरा है। तंग हालातों ने उसे नन्हीं सी उम्र में समझदारी का सबक तो सिखा दिया है, लेकिन तीन छोटे भाइयों की जिम्मेदारी उस पर बोझ सरीखी बन गई है। हम बात कर रहे हैं मुरली चित्रलोक के पास रहने वाली तूफानी नगला निवासी गुडिय़ा की।
गुडिय़ा के पिता वर्ष 2016 में कैंसर की बीमारी के चलते दुनिया को छोड़ गए। परिवार के गुजारे के लिए मां जैसे-तैसे परिवरिश में जुटी थी, लेकिन कोरोना की क्रूरता ने वर्ष 2020 में मां की ममता भी उससे छीन ली। अब गुडिय़ा पर खुद के साथ उसके तीन छोटे भाइयों की परिवरिश की जिम्मेदारी है। घर में आमदनी का कोई जरिया नहीं होने के कारण यह अनाथ बच्चे लोगों के रहम पर पेट पालन कर रहे हैं। उनके घर की बिजली का बिल पिछले दो साल से नहीं भरा गया है। आर्थिक तंगहाली का आलम यह है कि रोशनी के कतरे पर भी तंगी की मार है। गुडिय़ा का कहना है कि उसकी मां की मौत कोरोना से हुई, लेकिन उसे अभी तक इसके लिए सरकार की ओर से कोई सहायता राशि नहीं दी गई है। सहायता के लिए उसने इधर-उधर दौड़-धूप भी की, लेकिन कागजात उपलब्ध नहीं होने के कारण वह मासूय होकर बैठ गई। परिवार की सुरक्षा का जिम्मा तो पास रहने वाले चाचा उठा लेते हैं, लेकिन इन बच्चों के भरण-पोषण का कोई इंतजाम नहीं है। वर्तमान में मोहल्लेवासी या चाचा उनके खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं। गुडिय़ा का कहना है कि बिजली का बिल नहीं भरे जाने के कारण विद्युत निगम के कार्मिक आए दिन घर पहुंचकर कनेक्शन काटने की बात कहते हैं। गुडिय़ा का कहना है कि उनके पास खाने तक का इंतजाम नहीं है। ऐसे में वह बिजली का बिल कहां से अदा करेगी।

नहीं भरी गई स्कूल फीस, किताबों के भी लाले

माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद अब गुडिय़ा पर ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। गुडिय़ा एसबीके स्कूल में पढ़ती है, लेकिन उसकी अभी तक फीस जमा नहीं हुई है। न ही उसके पास पढऩे को किताब हैं। मंगलवार को गुडिय़ा सहायता की उम्मीद में रंजीत नगर स्थित स्वास्थ्य मंदिर संस्थान पहुंची। यहां उसने आपबीती बताई। इस पर स्वास्थ्य मंदिर के संचालक डॉ. वीरेन्द्र अग्रवाल की ओर से उसे राशन के साथ जरूरत की सामग्री दी और पढ़ाई के लिए किताबें भी दी हैं। डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि यदि कुछ अन्य संस्थाएं आगे आकर इस परिवार की मदद करें तो बच्चों की पढ़ाई, राशन और बिल का इंतजाम हो सकता है। वह बताते हैं कि गुडिय़ा पढऩे में होशियार है। ऐसे में यदि कोई भी व्यक्ति उसकी पढ़ाई का जिम्मा उठाए तो वह अच्छी पढ़ाई कर सकती है।



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/cancer-snatched-away-corona-hit-mamta-7190690/

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