दर्द में डूबे हैं नौटंकी कलाकार के स्वर

भरतपुर. नौटंकी...और भरतपुर का नाम आते ही कामां निवासी मास्टर गिर्राज प्रसाद और मनोहरलाल की जोड़ी का ख्याल आता है। नौटंकी के उत्तर भारत में नामी कलाकार थे। हाल में ही भरतपुर जिले के सामई खेड़ा गांव निवासी नौटंकी कलाकार रामदयाल शर्मा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। जिले के लिए गौरव की बात है, लेकिन नौटंकी कलाकारों का दर्द किसी से छिपा नहीं है। क्योंकि राज्य हो या केंद्र सरकार, किसी ने इस विधा को बनाए रखने के कोई प्रयास नहीं किए।
-ब्रज क्षेत्र की सुप्रसिद्ध लोक विधा नौटंकी को देश भर में पहचान दिलाने वाले उत्तर भारत के हास्य कलाकार ग्राम हताना (मथुरा) उप्र निवासी चौधरी धर्मपाल (86) ने बालउम्र से ही रामलीला में अभिनय कर नौटंकी विधा को अपने पिता स्व. आला सिंह व उस्ताद स्व. हरिचन्द मिढ़कौला नुहूं (हरियाणा) से सीखा। जीवन का प्रथम मंचन 12 वर्ष की बाल उम्र में पैगाम उत्तरप्रदेश में राजा हरिश्चन्द नौटंकी में रोहताश के पात्र के रूप में किया।
पैगाम ग्राम से ही नौटंकी विधा का पैगाम पूरे देश में प्रोग्रामों के जरिए इस कदर किया कि आज 86 वर्ष की वयोवृद्ध अवस्था में पूर्ण जोश व उत्साह के साथ सम्पूर्ण रात्रि नौटंकी का निर्देशन व हास्य मंचन कर हजारों की भीड़ को हंसी से लोट-पोट कर वाहवाही लूटते हंै। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के साथ कस्बों व शहरों में नौटंकी को लोकप्रिय बनाने का धर्म अदा कर रहे हैं चौधरी धर्मपाल। नगर पालिका नगर की ओर से संचालित श्रीराम रथयात्रा मेले के आमंत्रण पर जब चौधरी अपनी मण्डली के साथ नगर भी आए। कुंडा मन्दिर स्थित कृष्णा गार्डन में देश का मशहूर वृद्ध कलाकार सुविधाओं से रहित सामान्य कपड़ों में गमछा बिछाकर जमीन पर लेटा हुआ मिला। स्वांग रूप मंचीय कला नौटंकी का प्रदर्शन चौधरी इसकी अनेकों शैलियों यथा चौबोला, लावणी, लंगड़ी-लावणी, अद्कट्टा लावणी, प्रचलित अप्रचलित छन्द रचना, सोरठा, भैर तबीले, सिन्ध तबीले, सवैया, छप्प, रसिया, मांड गायकी, कव्वाली-छोटी कव्वाली, भजन व जिले की ठुमरी (छोटा ख्याल) आदि अद्र्ध शास्त्रीय संगीत में रसिकता पूर्ण गायन कर जहा दर्शकों के दिलों को जीत रहे हैं।
वह दर्द भरी आवाज में कहते हैं कि मैने सम्पूर्ण जीवन नौटंकी पर न्यौछावर कर दिया और इसका प्रदर्शन सम्पूर्ण भारत के गांव-गांव से लेकर जहां तक हिन्दी भाषा को बोला व जाना जाता है, वहां से लेकर नेपाल तक किया। आज भी उम्र के आखरी पड़ाव पर हूं, लेकिन सरकार व उसके कद्रदानों ने न तो कोई उचित सम्मान दिया और न ही कलाकार सहायता एवं कलाकार पेंशन तक दी। सुविधाओं से रहित सामान्य व्यसन मुक्त जीवन जीने वाले चौधरी धर्मपाल एक ओर इस विधा के संरक्षण में लगे हैं। वहीं दूसरी और गुणी शिष्यों को तैयार करने में लगे हैं। इनमें प्रमुखत: हास्य प्रमुख कलाकार पं. किशन स्वरूप पचौरी बाकलपुर मथुरा, चौधरी कर्मपाल (हास्य) सुभाष सिसोदिया (हास्य) के अलावा प्रकाश सिंह सिसोदिया गायन छाता, रामहेत सिंह गायन कोसीकलां, लेखराज सिंह बैनीवाल गायन व हास्य, रमेश शर्मा गायन, चौधरी रुस्तम सिंह विप्र अखाड़ा हाथरस एवं उभरता कलाकार नाती शिष्य कन्हैया सिंह सिसोदिया छाता आदि हैं, जो उनके साथ नौटंकी का मंचन कर रहे हैं।
अनेकों नौटंकी के स्वांगों सत्यवादी राजा हरिचन्द, अमर सिंह राठौर, इन्दल-हरण, दही वाली गली, भक्त पूरणमल, शंकरगढ़ संग्राम, लैला-मंजनू, सियापोस आदि नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिका व हास्य पात्र के माध्यम से कौमी एकता, सामाजिक समरसता व सम्प्रदायिक सद्भाव की भावना व लोक संस्कृति को अक्षुण्य रख नौटंकी के पर्याय चौधरी धर्मपाल जहां मा. गिर्राज प्रसाद कामां, पं. मनोहर लाल से लेकर लोकप्रिय गायिका कृष्णा कुमारी माथुर व नैमसिंह सिसोदिया के अलावा हाल ही पद्मश्री भूषित रामदयाल शर्मा के साथ काम कर चुके धर्मपाल नौटंकी के मूल स्वरूप को जीवन्त किए हुए हैं।

- अमित पलवार, व्याख्याता (संस्कृत)
तालबन्दी शास्त्रीय विधा

जानिए क्या है नौटंकी कला

चौबोलों का प्रयोग अक्सर नौटंकी में होता है। यह काव्य परंपरा में प्रयोग होने वाली चार पंक्तियों की एक छंद शैली है। प्रत्येक चरण में आठ और सात के विश्राम से 15 मात्राएं होती हैं। अंत में लघु गुरू होता है। जैसे-रघुबर तुम सों विनती करौं। कीजै सोई जाते तरौ। भिखारीदास ने इसके दुगने का चौबोला मानकर 16 और 14 मात्राओं पर यति मानी है।



source https://www.patrika.com/bharatpur-news/the-voices-of-the-gimmick-artist-are-immersed-in-pain-7480702/

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